इषीका काशमुच्यते
इति हलायुधः। आस्थदस्यति स्म। असु क्षेपणे
इति धातोर्लुङ्। अस्यतिवक्तिख्यातिभ्योऽङ्
(अष्टाध्यायी ३.१.५२ ) इत्यङ्प्रत्ययः। अस्यतेस्थुक्
(अष्टाध्यायी ७.४.१७ ) इति थुगागमः। स काक एकनेत्रस्य व्ययेन दानेन तस्मादस्त्रादात्मानं मुमुचे मुक्तवान्। मुचेः कर्तरि लिङ्। धेनुं मुमोचज
(२।१)इतिक्प्रयोगः ॥
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त | स्मि | न्ना | स्थ | दि | षी | का | स्त्रं |
रा | मो | रा | मा | व | बो | धि | तः |
आ | त्मा | नं | मु | मु | चे | त | स्मा |
दि | के | ने | त्र | व्य | ये | न | सः |