ईषदसमाप्तौ-
(अष्टाध्यायी ५.३.६७ ) इति कल्पप्प्रत्ययः। अवनिपालः क्लृप्ता रम्या नवा उपकार्या यस्मिन्स तस्मिन्पथि कतिचिच्छर्वरी रात्रिर्गमयित्वा मैथिलीदर्शनीनामङ्गनानां लोचनैः कुवलयानि येषां संजातानि कुवलयिताः। तदस्य संजातं तारकादिभ्य इतञ्
(अष्टाध्यायी ५.२.३६ ) इतीतच्प्रत्ययः। कुवलयिता गवाक्षा यस्यास्तां पुरमयोध्यामविशत् प्रविष्टवान् ॥
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अ | थ | प | थि | ग | म | यि | त्वा | क्लृ | प्त | र | म्यो | प | का | र्ये |
क | ति | चि | द | व | नि | पा | लः | श | र्व | रीः | श | र्व | क | ल्पः |
पु | र | म | वि | श | द | यो | ध्यां | मै | थि | ली | द | र्श | नी | नां |
कु | व | ल | यि | त | ग | वा | क्षां | लो | च | नै | र | ङ्ग | ना | नाम् |
न | न | म | य | य |