सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
वीचीति॥ विचिलोलभुजयोस्तरङ्गचञ्चलबाह्वोः। इदं विशेषणं नदोपमानसिद्ध्यर्थं वेदितव्यम्। तयोश्चपलं चञ्चलमपि गतं गतिः शैशवाद्धेतोरशोभत। किमिव? तोयदागमे वर्षासमये। उज्झत्युदकमित्युद्ध्यः। भिनत्ति कूलमिति भिद्यः, भिद्योद्ध्यौ नदे
(अष्टाध्यायी ३.१.११५ ) इति क्यबन्दौ निपातितौ। उद्ध्यभिद्ययोर्नदविशेषयोर्नामधेयसदृशं नामानुरूपं विचेष्टितमिव उदकोज्झन-कूलभेदनरूपव्यापार इव। समयोत्पन्नं चापलमपि शोभत इति भावः ॥
छन्दः
रथोद्धता [११: रनरलग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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वी | चि | लो | ल | भु | ज | यो | स्त | यो | र्ग | तं |
शै | श | वा | ञ्च | प | ल | म | प्य | शो | भ | त |
तो | य | दा | ग | म | इ | वो | द्ध्य | भि | द्य | यो |
र्ना | म | धे | य | स | दृ | शं | वि | चे | ष्टि | तम् |
र | न | र | ल | ग |