सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
मातृवर्गेति॥ मातृवर्गस्य चरणान्स्पृशत इति मातृवर्गचरणस्पृशौ। कृतमातृवर्गनमस्कारावित्यर्थः। स्पृशोऽनुदके क्क्न्
(अष्टाध्यायी ३.२.५८ ) इति क्किन्प्रत्ययः। तौ महौजसो मुनेः पदवीं प्रपद्य। महौजसो भास्करस्य गतिवशान्मेषादिराशिसंक्रान्त्यनुसारात्प्रवर्तिनौ मधुमाधवाविव चैत्रवैशाखाविव रेजतुः। फणां च सप्तानाम्
(अष्टाध्यायी ६.४.१२५ ) इति वैकल्पिकावेत्वाभ्यासलोपौ। स्याञ्चैत्रे चैत्रिको मधुः
इति। वैशाखे माधवो राधः
इति चामरः ॥
छन्दः
रथोद्धता [११: रनरलग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
---|
मा | तृ | व | र्ग | च | र | ण | स्पृ | शौ | मु | ने |
स्तौ | प्र | प | द्य | प | द | वीं | म | हौ | ज | सः |
रे | च | तु | र्ग | ति | व | शा | त्प्र | व | र्ति | नौ |
भा | स्क | र | स्य | म | धु | मा | ध | वा | वि | व |
र | न | र | ल | ग |