सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
ताविति॥ मणिकुट्टिमोचितौ मणिबद्धभूमिसंचारोचितौ तौ मुनिप्रदिष्टयोः कौशिकेनोपदिष्टयोर्बलातिबलयोर्विद्ययोर्बलातिबलाख्ययोर्मन्त्रयोः प्रभावतः सामर्थ्यान्मातृपार्श्वपरिवर्तिनौ मातृसमीपवर्तिनाविव पथि न मम्सतुः। न म्लानावित्यर्थः। अत्र रामायणश्लोकः(बाल.२३।१८)-क्षुत्पिपासे न ते राम! भविष्येते नरोत्तम!। बलामतिबलां चैव पठतः पथि राघवो!॥
इति॥
छन्दः
रथोद्धता [११: रनरलग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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तौ | ब | ला | ति | ब | ल | योः | प्र | भा | व | तो |
वि | द्य | योः | प | थि | मु | नि | प्र | दि | ष्ट | योः |
म | म्ल | तु | र्न | म | णि | कु | ट्टि | मो | चि | तौ |
मा | तृ | पा | र्श्व | प | रि | व | र्ति | ना | वि | वि |
र | न | र | ल | ग |