तत्र तस्येव
(अष्टाध्यायी ५.१.११६ ) इति सप्तम्यर्थे वतिः। सागरेऽपि। ज्वलति ॥
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क्ष | त्रि | या | न्त | क | र | णो | ऽपि | वि | क्र | म |
स्ते | न | मा | म | व | ति | ना | जि | ते | त्व | यि |
पा | व | क | स्य | म | हि | मा | स | ग | ण्य | ते |
क | क्ष | व | ज्ज्व | ल | ति | सा | ग | रे | ऽपि | यः |
र | न | र | ल | ग |