सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
तस्येति॥ पार्थिवा जनकः। प्रथितवंशे जन्म यस्य तस्य तथोक्तस्य । एतेन वरसंपत्तिरुक्ता। शिशोस्तस्य रामस्य ललितं कोमलं वपुर्वीक्ष्य। स्वं स्वकीयं दुरानममानमयितुमशक्यम्। नमेर्ण्यन्तात्खल्। धनुर्विचिन्त्य च दुहितृशुल्कं कन्यामूल्यं जामातृदेवयम्। शुल्कं घट्टादिदेये स्याज्जामातुर्बन्धकेऽपि च
इति विश्वः। तस्य धनुर्भङ्गरूपस्य संस्थया स्थित्या। संस्था स्थितौ शरे नाशे
इति विश्वः। पीडितो बाधितः। शिशुना रामेण दुष्करमिति दुःखित इति भावः ॥
छन्दः
रथोद्धता [११: रनरलग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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त | स्य | वी | क्ष्य | ल | लि | तं | व | पुः | शि | शोः |
पा | र्थि | वः | प्र | थि | त | वं | श | ज | न्म | नः |
स्वं | वि | चि | न्त्य | च | ध | नु | र्दु | रा | न | मं |
पी | डि | तो | दु | हि | तृ | शु | ल्क | सं | स्थ | या |
र | न | र | ल | ग |