सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
इतीति॥ इत्यपास्तमखविघ्नयोस्तयो राघवयोः। संयुगे रणे साधुः सांयुगीनस्तम्। प्रतिजनादिभ्यः खञ्
(अष्टाध्यायी ४.४.९९ ) इति खञ्प्रत्ययः। सांयुगीनो रणे साधुः
इत्यमरः (अमरकोशः २.८.७७ ) । विक्रममभिनन्द्य ऋत्विजो याजकाः। वाचि यतो वाग्यतो मौनी तस्य कुलपतेर्मुनिकुलेश्वरस्य क्रियाः क्रतुक्रिया यथाक्रमं निरवर्तयन् निषअपादितवन्तः ॥
छन्दः
रथोद्धता [११: रनरलग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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इ | त्य | पा | स्त | म | ख | वि | घ्न | यो | स्त | योः |
सां | यु | गी | न | म | भि | न | न्द्य | वि | क्र | मम् |
ऋ | त्वि | जः | कु | ल | प | ते | र्य | था | क्र | मं |
वा | ग्य | त | स्य | नि | र | व | र्त | य | न्क्रि | याः |
र | न | र | ल | ग |