कृती च कुशलः समौ
इत्यमरः (अमरकोशः ३.३.११३ ) । आश्रमाद्बहिः। पत्रिणां पक्षिणाम्। पत्रिणौ शरपक्षिणौ
इत्यमरः (अमरकोशः ३.३.११३ ) । व्यभजत्। विभज्य दत्तवानित्यर्थः ॥
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यः | सु | बा | हु | रि | ति | रा | क्ष | सो | ऽप | र |
स्त | त्र | त | त्र | वि | स | स | र्प | मा | य | या |
तं | क्षु | र | प्र | श | क | ली | कृ | तं | कृ | ती |
प | त्रि | णां | व्य | भ | ज | दा | श्र | मा | द्व | हिः |
र | न | र | ल | ग |