सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
आससादेति॥ ततो मुनि। शिष्यवर्गेण परिकल्पिता सज्जिताऽर्हणा पूजासामग्री यस्मिंस्तत्तथोक्तम्। बद्धाः पल्लवपुटा एवाञ्जलयो यैस्ते तथाभूता द्रुमा यस्मिंस्तत्तथोक्तम्। दर्शनेन मुनिदर्शनेनोन्मुखा मृगा यस्मिंस्तत्तत्। आत्मनस्तपोवनमाससाद। एतेन विशेषणत्रयेणातिथिसत्कारताच्छील्यविनयशान्तयः सूचिताः ॥
छन्दः
रथोद्धता [११: रनरलग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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आ | स | सा | द | मु | नि | रा | त्म | न | स्त | तः |
शि | ष्य | व | र्ग | प | रि | क | ल्पि | ता | र्ह | णम् |
ब | द्ध | प | ल्ल | व | पु | टा | ञ्ज | लि | द्रु | मं |
द | र्श | नो | न्मु | ख | मृ | गं | त | पो | व | नम् |
र | न | र | ल | ग |