सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
वामनेति॥ ततः परं राघवः। ऋषेः कौशिकादाख्यातुः श्रुतं पावनं शोधनं वामनस्य स्वपूर्वावतारविशेषस्याश्रमपदमुपेयिवानुपगतः सन्। उपेयिवाननाश्वाननूचानश्च
(अष्टाध्यायी ३.२.१०९ ) इति निपातः। प्रथमजन्मचिष्टितानि राम-वामनयोरैक्यात्स्मृतियोग्यान्यपि रामस्याज्ञानावतारत्वेन संस्कारदौर्बल्यादस्मरन्नपि। उन्मना उत्सुको बभूव ॥
छन्दः
रथोद्धता [११: रनरलग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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वा | म | ना | श्र | म | प | दं | त | तः | प | रं |
पा | व | नं | श्रु | त | मृ | षे | रु | पे | यि | वान् |
उ | न्म | नाः | प्र | थ | म | ज | न्म | चे | ष्टि | ता |
न्य | स्म | र | न्न | पि | ब | भू | व | रा | घ | वः |
र | न | र | ल | ग |