सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
स्थाण्विति॥ स आत्तकार्मुकः। दशरथस्यापत्यं पुमान् दाशरथी रामः। अत इञ्
(अष्टाध्यायी ४.१.९५ ) इतीञ्प्रत्ययः। स्थाणुर्हरः। स्थाणुः कीले हरे स्थिरे
इति विश्वः। तेन दग्धवपुषो मदनस्य तपोवनं प्राप्य चारुणा विग्रहेण कायेन। विग्रहः समरे काये
इति विश्वः। प्रतिनिधिः प्रतिकगृतिः सदृशोऽभवत्, कर्मणा न पुनः, देहेन मदनसुन्दर इति भावः ॥
छन्दः
रथोद्धता [११: रनरलग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
---|
स्था | णु | द | ग्ध | व | पु | ष | स्त | पो | व | नं |
प्रा | प्य | दा | श | र | थि | रा | त्त | का | र्मु | कः |
वि | ग्र | हे | ण | म | द | न | स्य | चा | रु | णा |
सो | ऽभ | व | त्प्र | ति | नि | धि | र्न | क | र्म | णा |
र | न | र | ल | ग |