उदन्वानुदधौ च
(अष्टाध्यायी ८.२.१३ ) इति निपातः। प्रापुः। आदिपूरुषो विष्णुश्च बुबुधे। योगनिद्रां जहावित्यर्थः। गमनप्रतिबोधयोरविलम्बार्थौ चकारौ। तथा हि-अव्याक्षेपो गम्यस्याव्यासङ्गः। अविलम्ब इति यावत्। भविष्यन्त्याः कार्यसिद्धेर्लक्षणं लिङ्गं हि॥ उक्तं च-अनन्यपरता चास्य कार्यसिद्धेस्तु लक्षणम्
इति॥
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ते | च | प्रा | पु | रु | द | न्व | न्तं |
बु | बु | धे | चा | दि | पू | रु | षः |
अ | व्या | क्षे | पो | भ | वि | ष्य | न्त्याः |
का | र्य | सि | द्धे | र्हि | ल | क्ष | णम् |