सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
अनेनेति॥ तस्य राज्ञो दशरथस्यान्यैर्दुर्लभा असाधारणा गुणा अनेन कथइता व्याख्याताः। यद्यस्मात्त्रयो लोकास्त्रैलक्यम्। चातुर्वर्ण्यादित्वात्स्वार्थेष्यञ्। तस्य प्रभवः कारणं विष्णुरपि तस्मिन् राज्ञि प्रसूतिमुत्पत्तिं चक्रमे कामितवान्। त्रिभुवनकारणस्यापि कारणमिति परमावधिर्गुणसमाश्रय इत्यर्थः ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
---|
अ | ने | न | क | थि | ता | रा | ज्ञो |
गु | णा | स्त | स्या | न्य | दु | र्ल | भाः |
प्र | सू | तिं | च | क | मे | त | स्मिं |
स्त्रै | लो | क्य | प्र | भ | वो | ऽपि | यत् |