अस्मायामेधास्रजो विनिः
(अष्टाध्यायी ५.२.१२१ ) इति विनिप्रत्ययः। निशाचरै रक्षोभिरनालीढमनास्वादितं यथा तथाऽचिरात् पुनरादास्यध्वे ग्रहीष्यध्वे ॥
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|
अ | चि | रा | द्य | ज्व | भि | र्भा | गं | |
क | ल्पि | तं | वि | ध | इ | व | त्पु | नः |
मा | या | वि | भि | र | ना | ली | ढ | |
मा | दा | स्य | ध्वे | नि | शा | च | रैः |