सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
जान इति॥ हे देवाः! वो युष्माकमनुभाव-पराक्रमौ महिम-पुरुषकारौ रक्षसा रावणेन। अङ्गिनां शरीरिणां प्रथम-मध्यमावुभौ गुणौ सत्त्व-रजसी तमसेव तमोगुणेनेव। आक्रान्तौ जाने। वाक्यार्थः कर्म ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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जा | ने | वो | र | क्ष | सा | क्रा | न्ता |
व | नु | भा | व | प | रा | क्र | मौ |
अ | ङ्नि | नां | त | म | से | वो | भौ |
गु | णौ | प्र | थ | म | म | ध्य | मौ |