स्रियाः पुंवत्-
(अष्टाध्यायी ६.३.३४ ) इत्यनुवर्त्य पुंवत्कर्मधारय-
(अष्टाध्यायी ६.३.४२ ) इति पुंवद्भावः। निर्यात
शब्दस्य या निर्याता सावशेषा सा गङ्गेवेति सामानाधिकरण्यनिर्वाहः। निर्यातायाः शेषेति विग्रहे पुंवद्भावो दुर्घटा एव। ऊर्ध्वप्रवर्तिन्यूर्ध्ववाहिनी गङ्गेव। बभौ। इत्युत्प्रेक्षा ॥
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ब | भौ | स | द | श | न | ज्यो | त्स्ना |
सा | वि | भो | र्व | द | नो | द्ग | ता |
नि | र्या | त | शे | षा | च | र | णा |
द्ग | ङ्गे | वो | र्ध्व | प्र | व | र्ति | नी |