सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
पुराणस्येति॥ पुराणस्य चिरंतनस्य कवेस्तस्य भगवतो वर्णस्थानेषूरः-कण्ठादिषु समीरिता सम्यगुञ्चारिता। अत एव कृतः संपादितः संस्कारः साधुत्वस्पष्टतादिप्रयत्नो यस्याः सा भारती वाणी चरितार्था कृतार्था वभूवैव। एव
- कारस्त्वसंभावनाविपरीतभावनाव्युदासार्थः ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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पु | रा | ण | स्य | क | वे | स्त | स्य |
व | र्ण | स्था | न | स | मी | रि | ता |
ब | भू | व | कृ | त | सं | स्का | रा |
च | रि | ता | र्थै | व | भा | र | ती |