सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
त्वयीति॥ त्वय्यावेशितं निवेशितं चित्तं यैस्तेषाम्। तुभ्यं समर्पितानि कर्माणि यैस्तेषाम्। मन्मना भव मद्धक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु। मामेवैष्यसि कौन्तेय ! प्रतिजाने प्रियोऽसि मे॥
(गी.९।३४)इति भगवद्वचनात्। वीतरागाणां विरक्तानामभूयःसंनिवृत्तयेऽपुनरावृत्तये। मोक्षायेत्यर्थः। त्वमेव गतिः साधनम्। तमेवं विदित्वाऽतिमृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय
(श्वेता.६।१५) इति श्रुतेरित्यर्थः ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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त्व | य्या | वे | शि | त | चि | त्ता | नां |
त्व | त्स | म | र्पि | त | क | र्म | णाम् |
ग | ति | स्त्वं | वी | त | रा | गा | णा |
म | भू | यः | सं | नि | वृ | त्त | ये |