वृद्धाच्छः
(अष्टाध्यायी ४.२.११४ ) इति छप्रत्ययः। ओधाः प्रवाहाः। तेऽप्यागमैरागतिभिर्बहुधा भिन्नाः सिद्धिहेतवश्च। अर्णव इव त्वय्येव निपतन्ति प्रविशन्ति। येन केनापि रूपेण त्वामेवोपयान्तीत्यर्थः। यथाहुराचार्याः-किं बहुना कारवोऽपि विश्वकर्मेत्युपासते
इति ॥
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ब | हु | धा | प्या | ग | मै | र्भि | न्नाः |
प | न्था | नः | सि | द्धि | हे | त | वः |
त्व | य्ये | व | नि | प | त | न्त्यो | धा |
जा | ह्न | वी | या | इ | वा | र्ण | वे |