सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
अभ्यासेति॥ अभ्यासेन निगृहीतं विषयान्तरेभ्यो निवर्तितम्। तेन मनसा योगिनो हृदयाश्रयं हृत्पद्मस्थं ज्योतिर्मयं त्वां विमुक्तये मोक्षार्थविचिन्वन्त्यन्विष्यन्ति। ध्यायन्तीत्यर्थः ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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अ | भ्या | स | नि | गृ | ही | ते | न |
म | न | सा | हृ | द | या | श्र | यम् |
ज्यो | ति | र्म | यं | वि | चि | न्व | न्ति |
यो | गि | न | स्त्वां | वि | मु | क्त | ये |