त्रिवर्गो धर्मकामार्थैश्चतुर्वर्गः समोक्षकैः
इत्यमरः (अमरकोशः २.७.६२ ) । तत्फलकं यज्ज्ञानम्। चत्वारि युगानि कृतत्रेतादीनि यासु ताश्चतुर्युगाः कालावस्थाः कालपरिमाणम्। चत्वारो वर्णाः प्रकृता उच्यन्ते यस्मिन्निति चतुर्वर्णमयः। चातुर्वर्ण्यप्रचुर इत्यर्थः। तत्प्रकृतवचने मयट्
(अष्टाध्यायी ५.४.२१ ) । तद्धितार्थ-
(अष्टाध्यायी २.१.५१ ) इत्यादिना तद्धितार्थे विषये तत्पुरुषसमासः। स लोकः। इत्येवंरूपं सर्वं चतुर्मुखाञ्चतुर्मुखरूपिणस्त्वत्तः। जातमिति शेषः। इदं सर्वमसृजत यदिदं किंच
(तैत्ति.२।६) इति श्रुतेः ॥
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च | तु | र्व | र्ग | फ | लं | ज्ञा | नं |
का | ला | व | स्था | श्च | तु | र्यु | गाः |
च | तु | र्व | र्ण | म | यो | लो | क |
स्त्व | त्तः | स | र्वं | च | तु | र्मु | खात् |