तद्धित्तार्थ-
(अष्टाध्यायी २.१.५१ ) इत्युत्तरपदसमासः। सप्तानामर्णवानां जलं सप्तार्णवजलम्। पूर्ववत्समासः। तत्र शेते यः स सप्तार्णवजलेशयः। तम्। शयवासवासिष्वकालात्
(अष्टाध्यायी ६.३.१८ ) इत्यलुक्। सप्तार्चिर्मुखं यस्य तम्। अग्निमुख! वै देवा
इति श्रुतेः। सप्तानां लोकानां भूर्भुवःस्वरादीनामेकसंश्रयम्। एवंभूतमाचख्युः ॥
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
---|---|---|---|---|---|---|---|
स | प्त | सा | मो | प | गी | तं | त्वां |
स | प्ता | र्ण | व | ज | ले | श | यम् |
स | प्ता | र्चि | र्मु | ख | मा | च | ख्युः |
स | प्त | लो | कै | क | सं | श्र | यम् |