एतिस्तुशास्वृदृजुषः क्यप्
(अष्टाध्यायी ३.१.१०९ ) इति क्यप्प्रत्ययः। वाक्च मनश्च वाङ्मनसे। अचतुर-
(अष्टाध्यायी ५.४.७७ ) इत्यच्प्रत्ययान्तो निपातः। तयोर्गोचरो विषयो न भवतीत्यवाङ्मनसगोचरः। तमेनं विष्णुं तुष्टुवुरस्तुवन् ॥
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प्र | णि | प | त्य | सु | रा | स्त | स्मै |
श | म | यि | त्रे | सु | र | द्वि | षाम् |
अ | थै | नं | तु | ष्टु | वुः | स्तु | त्य |
म | वा | ङ्म | न | स | गो | च | रम् |