अन्यारात्-
(अष्टाध्यायी २.३.२९ ) इत्यादिना पञ्चमी। दुर्लभं दुर्लभ्यं मत्वा मयावर्जितं दत्तं पयः पूर्वैः पितृभिः स्वनिःश्वासैर्दुःखजैः कवोष्णमीषदुष्णं यथा तथोपभुज्यते। नूनमिति वितर्के। कवेष्णमिति कुशब्दस्य कवादेशः, कोष्णं कवोष्णं मन्दोष्णं कदुष्णं त्रिषु तद्वति
इत्यमरः (अमरकोशः १.३.३९ ) ॥
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म | त्प | रं | दु | र्ल | भं | म | त्वा |
नू | न | मा | व | र्जि | तं | म | या |
प | यः | पू | र्वैः | स्व | निः | श्वा | सैः |
क | वो | ष्ण | मु | प | भु | ज्य | ते |