अवे ग्रहो वर्षप्रतिबन्धे
(अष्टाध्यायी ३.३.५१ ) इत्यञ्प्रत्ययः। वृष्टिर्वर्षं तद्विघातेऽवग्राहावग्रहौ समौ
इत्यमरः (अमरकोशः १.३.१३ ) । तेन विशोषिणां विशुष्यतां सस्यानां वृष्टिर्भवति । वृष्टिरूपेण सस्यान्युपजीवयतीति भावः। अत्र मनुः(३।७६)-अग्मौ प्रास्ताहुतिः सम्यगादित्यमुपतिष्ठते। आदित्याज्जायते वृष्टिर्वृष्टेरन्नं ततः प्रजाः ॥
इति ॥
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ह | वि | रा | व | र्जि | तं | हो | त |
स्त्व | या | वि | धि | व | द | ग्नि | षु |
वृ | ष्टि | र्भ | व | ति | स | स्या | ना |
म | व | ग्र | ह | वि | शो | षि | णाम् |