सभाया यः
(अष्टाध्यायी ४.४.१०४ ) इति यप्रत्ययः। गुप्ततमेन्द्रियाः अत्यन्तनियमितेन्द्रियाः। मुनयः सभार्याय गोप्त्रे रक्षकाय। नयः शास्त्रमेव चक्षुस्तत्त्वावेदकं प्रमाणं यस्य तस्मै नयचक्षुषे। अत एवार्हते प्रशस्ताय। पूज्यायेत्यर्थः। अर्हः प्रशंसायाम्
(अष्टाध्यायी ३.२.१३३ ) इति शतृप्रत्ययः। तस्मै राज्ञेऽर्हणां पूजां चक्रुः। पूजा नमस्यापचितिः सपर्यार्चार्हणाः समाः
इत्यमरः (अमरकोशः २.७.३७ ) ॥
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त | स्मै | स | भ्याः | स | भा | र्या | य |
गो | प्त्रे | गु | प्त | त | मे | न्द्रि | याः |
अ | र्ह | णा | म | र्ह | ते | च | क्रु |
र्मु | न | यो | न | य | च | क्षु | षे |