रूपनामभागेभ्यो धेयप्रत्ययो वक्तव्यः
(वा.३३३०) इति वक्तव्यसूत्रात्स्वाभिधेये धेयप्रत्ययः, तस्योचितैः। अत एव, घटजानां पर्णशालानां द्वाररोधिभिर्द्वाररोधकैर्मृगैः। ऋषिपत्नीनामपत्यैरिव आकीर्णं व्याप्तम् ॥
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आ | की | र्ण | ऋ | षि | प | त्नी | ना |
मु | ट | ज | द्वा | र | रो | धि | भिः |
अ | प | त्यै | रि | व | नी | वा | र |
भा | ग | धे | यो | चि | तै | र्मृ | गैः |