राजाहःसखिभ्यष्टच
(अष्टाध्यायी ५.४.९१ ) इति टच्प्रत्ययः। सहायान्तरनिरपेक्ष इति भावः। स राजा सायं सायंकाले संयमिनो नियमवतस्तस्य महर्षेर्वसिष्ठस्याश्रमं प्रापत् प्राप। पुषादित्वादङ् ॥
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स | दु | ष्प्रा | प | य | शाः | प्रा | प |
दा | श्र | मं | श्रा | न्त | वा | ह | नः |
सा | यं | सं | य | मि | न | स्त | स्य |
म | ह | र्षे | र्म | हि | षी | स | खः |