सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
तत्तदिति॥ प्रियं दर्शनं स्वकर्मकं यस्यासौ प्रियदर्शनः। दर्शनीय इत्यर्थः। भूमिपतिः पत्न्यै तत्तदद्भुतं वस्तु दर्शयन्, लङ्घितमतिवाहितमप्यध्वानं न बुबुधे न ज्ञातवान्। बुधः सौम्य उपमोपमानं यस्येति विग्रहः । इदं विशेषणं तत्तद्दर्शयन्नित्युपयोगितयैतस्य ज्ञातृत्वसूचनार्थम् ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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त | त्त | द्भू | मि | प | तिः | प | त्न्यै |
द | र्श | य | न्प्रि | य | द | र्श | नः |
अ | पि | ल | ङ्घि | त | म | ध्वा | नं |
बु | बु | धे | न | बु | धो | प | मः |