तत्तु हैयंगवीनं यद्ध्योगोदोहोद्भवं घृतम्
इत्यमरः (अमरकोशः २.२.२१ ) । हैयंगवीनं संज्ञायाम्
(अष्टाध्यायी २.२.२३ ) इति निपातः। तत्सद्योघृतम्। आदायोपस्थितान्घोषवृद्धान्। घोष आभीरपल्ली स्यात्
इत्यमरः (अमरकोशः २.२.२१ ) । वन्यानां मार्गशाखिनां नामधेयानि पृच्छन्तौ। दुह्याच्-
(वा.१०९०, ११००) इत्यादिना पृच्छतेर्द्विकर्मकत्वम्। कुलकम्॥
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है | यं | ग | वी | न | मा | दा | य |
घो | ष | वृ | द्धा | नु | प | स्थि | तान् |
ना | म | धे | या | नि | पृ | च्छ | न्तौ |
व | न्या | नां | मा | र्ग | शा | खि | नाम् |