शालः सर्जतरुः स्मृतः
इति शाश्वतः। उत्किरन्ति विक्षिपन्तीत्युत्किराः। इगुपध-
(अष्टाध्यायी ३.१.१३५ ) इत्यादिना किरतेः कप्रत्ययः। पुष्परेणूनामुत्किरास्तैराधूता मान्द्यादीषत्कम्पिता वनराजयो यैस्तैर्वातैः सेव्यमानौ ॥
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से | व्य | मा | नौ | सु | ख | स्प | र्शैः |
शा | ल | नि | र्या | स | ग | न्धि | भिः |
पु | ष्प | रे | णू | त्कि | रै | र्वा | तै |
रा | धू | त | व | न | रा | जि | भिः |