माङि लुङ्
(अष्टाध्यायी ३.३.१७५ ) इत्याशीरर्थे लुङ्। न माङ्योगे
(अष्टाध्यायी ६.४.७४ ) इत्यडागमनिषेधः। परिमेयपुरःसरौ परिमितपरिचरौ। अनुभावविशेषात्तु तेजोविशेषात् सेनापरिवृताविव स्थोरौ ॥
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