सप्तम्यां जनेर्डः
(अष्टाध्यायी ३.२.९७ ) इति डप्रत्ययः। एतेनाभिजात्यमुक्तम्। दाक्षिण्यं परच्छन्दानुवर्तनम्। दक्षिणः सरलोदारपरच्छन्दानुवर्तिषु
इति शाश्वतः। तेन रूढं प्रसिद्धम्। तेन नाम्ना। अध्वरस्य यज्ञस्य दक्षिणा दक्षिणाख्या पत्नीव। सुदक्षिणेति प्रसिद्धा पत्न्यासीत्। अत्र श्रुतिः-यज्ञो गन्धर्वस्तस्य दक्षिणा अप्सरसः
इति। दक्षिणाया दाक्षिण्यं नामर्त्विजो दक्षिणत्वप्रापकत्वम्।
ते दक्षन्ते दक्षिणां प्रतिगृह्य
इति च ॥
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त | स्य | दा | क्षि | ण्य | रू | ढे | न |
ना | म्ना | म | ग | ध | वं | श | जा |
प | त्नी | सु | द | क्षि | णे | त्या | दी |
द | ध्व | र | स्ये | व | द | क्षि | णा |