सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
आकारेति॥ आकारेण मूर्त्या सदृशी प्रज्ञा यस्य सः। प्रज्ञया सदृशागमः प्रज्ञानुरूपशास्त्त्रपरिश्रमः। आगमैः सदृश आरम्भः कर्म यस्य स तथोक्तः। आरभ्यत इत्यारम्भः कर्म। तत्सदृश उदयः फलसिद्धिर्यस्य स तथोक्तः ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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आ | का | र | स | दृ | श | प्र | ज्ञः |
प्र | ज्ञ | या | स | दृ | शा | ग | मः |
आ | ग | मैः | स | दृ | शा | र | म्भ |
आ | र | म्भ | स | दृ | शो | द | यः |