सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
सर्वातिरिक्तेति॥ सर्वातिरिक्तसरेण सर्वेभ्यो भूतेभ्योऽधिकबलेन। सारोबले स्थिरांशे च
इत्यमरः। सर्वाणि भूगतानि तेजसाऽभिभवतीति सर्वतेजोभिभावी तेन। सर्वेभ्य उन्नतेनात्मना शरीरेण। आत्मा देहे धृतौ जीवे स्वभावे परमात्मनि
इति विश्वः। मेरुरिव। उर्वीं क्रान्त्वाऽऽक्रम्य स्थितः। मेरावपि विशेषणानि तुल्यानि। अष्टाभिश्च सुरेन्द्राणां मात्राभिर्निर्मितो नृपः। तस्मादभिभवत्येष सर्वभूतानि तेजसा ॥
(मनु.७।५)इति मनुवचनाद्राज्ञः सर्वतेजोभिभावित्वं ज्ञेयम् ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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स | र्वा | ति | रि | क्त | सा | रे | ण |
स | र्व | ते | जो | भि | भा | वि | ना |
स्थि | तः | स | र्वो | न्न | ते | नो | र्वीं |
क्रा | न्त्वा | मे | रु | रि | वा | त्म | ना |