यादांसि जलजन्तवः
इत्यमरः (अमरकोशः १.१०.२० ) । रत्नैश्चार्णव इव। अधृष्योऽनभिभवनीयश्चाभिगम्य आश्रयणीयश्च बभूव ॥
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भी | म | का | न्तै | र्नृ | प | गु | णैः |
स | ब | भू | वो | प | जी | वि | नाम् |
अ | धृ | ष्य | श्चा | भि | ग | म्य | श्य |
या | दो | र | त्नै | रि | वा | र्ण | वः |