अन्ववायोऽन्वयो वंशो गोत्रं चाभिजनं कुलम्
इति हलायुधः। अतिशयेन शुद्धिमान् शुद्धिमत्तरः। द्विवचनविभज्योप-
(अष्टाध्यायी ५.३.५७ ) इत्यादिना तरप्प्रत्ययः। दिलीप इति प्रसिद्धो राजा इन्दुरिव राजेन्दू राजश्रेष्ठः। उपमितं व्याघ्रादिना समासः। क्षीरनिधाविन्दुरिव प्रसूतो जातः॥
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त | द | न्व | ये | शु | द्धि | म | ति |
प्र | सू | तः | शु | द्धि | म | त्त | रः |
दि | ली | प | इ | ति | रा | जे | न्दु |
रि | न्दुः | क्षी | र | नि | धा | वि | व |