सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
वैवस्वत इति॥ मनस ईषिणो मनीषिणो धीराः, विद्वांस इति त्यावत्। पृषोदरादित्वात्साधुः। तेषां माननीयः पूज्यः। छन्दसां वेदानाम्। छन्दः पद्मे च वेदे च
इति विश्वः। प्रणव ओंकार इव। महीं क्षियन्तीशत इति महीक्षितः क्षितीश्वराः। क्षिधातोरैश्वर्यार्थात्क्विप्, तुगागमश्च। तेषाम्, आद्य आदिभूतः। विवस्वतः सूर्यस्यापत्यं पुमान् वैवस्वतो नाम वैवस्वत इति प्रसिद्धो मनुरासीत् ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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वै | व | स्व | तो | म | नु | र्ना | म |
मा | न | नी | यो | म | नी | षि | णाम् |
आ | सी | न्म | ही | क्षि | ता | मा | द्यः |
प्र | ण | व | श्छ | न्द | सा | मि | व |