सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
अलिभिरिति॥ अञ्जनबिन्दुमनोहरैः कज्जलकणसुन्दरैः कुसुमपङ्क्तिषु निपतन्ति ये तैः। अलिभिरङ्कितश्चह्नितस्तिलकः श्रीमान्नाम वृक्षः। तिलकः क्षुरकः श्रीमान्
इत्यमरः (अमरकोशः २.४.४० ) । वनस्थलीम्। तिलको विशेषकः। तमालपत्रतिलकचित्रकाणि विशेषकम्। द्वितीयं च तुरीयं च न स्त्रियम्
इत्यमरः (अमरकोशः २.४.४० ) । प्रमदामिव। न शोभयति स्मेति न खलु। अपि त्वशोभयदेवेत्यर्थः। लट् स्मे
(अष्टाध्यायी ३.२.११८ ) इति स्म
शब्दयोगाद्भूतार्थे लट् ॥
छन्दः
द्रुतविलम्बितम् [१२: नभभर]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ |
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अ | लि | भि | र | ञ्ज | न | बि | न्दु | म | नो | ह | रैः |
कु | सु | म | प | ङ्क्ति | नि | पा | ति | भि | र | ङ्कि | तः |
न | ख | लु | शो | भ | य | ति | स्म | व | न | स्थ | लीं |
न | ति | ल | क | स्ति | ल | कः | प्र | म | दा | मि | व |
न | भ | भ | र |