दम्भोलिरशनिर्द्वयोः
इत्यमरः (अमरकोशः १.१.५८ ) । अपूर्वत्वमेव स्पष्टयति-यद्यस्मात्कारणात्। अनेनाप्यशनिना प्रसिद्धाशनिना तरुस्तरुस्थानीयः स्वयमेव न पातितः। किंतु तस्य तरोर्विटपाश्रिता लता वल्ली क्षपिता नाशिता ॥
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
अ | थ | वा | म | म | भा | ग्य | वि | प्ल | वा | |
द | श | निः | क | ल्पि | त | ए | ष | वे | ध | सा |
य | द | ने | न | त | रु | र्न | पा | ति | तः | |
क्ष | पि | ता | त | द्वि | ट | पा | श्रि | ता | ल | ता |