सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
प्रसाधिकेति॥ काचित्। प्रसाधिकयाऽलंकर्त्र्या लम्बितं रञ्जनार्थं धृतं द्रवरागमेवार्द्रालक्तकमेव। अग्रश्चासौ पादश्चेत्यग्रपाद इति कर्मधारयसमासः। ``हस्ताग्राग्रहस्तादयो गुणगुणिनोर्भेदाभेदाभ्याम्`(का.सू.) इति वामनः। तमाक्षिप्याकृष्य। उत्सृष्टलीलागतिस्त्यक्तमन्दगमना सती। आ गवाक्षाद्गवाक्षपर्यन्तं पदवीं पन्थानमलक्तकाङ्कां लाक्षारागचिह्नां ततान विस्तारयामास ॥
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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प्र | सा | धि | का | ल | म्बि | त | म | ग्र | पा | द |
मा | क्षि | प्य | का | चि | द्द्र | व | रा | ग | मे | व |
उ | त्सृ | ष्ट | ली | ला | ग | ति | रा | ग | वा | क्षा |
द | ल | क्त | का | ङ्कां | प | द | वीं | त | ता | न |