पाशः पक्षश्च हस्तश्च कलापार्थाः कचात्परे
इत्यमरः (अमरकोशः २.६.९९ ) । तावदालोकमार्गप्राप्तिपर्यन्तं बद्धुं बन्धनार्थं न संभावितो न चिन्तित एव ॥
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
आ | लो | क | मा | र्गं | स | ह | सा | व्र | ज | न्त्या |
क | या | चि | दु | द्वे | ष्ट | न | वा | न्त | मा | ल्यः |
ब | द्धुं | न | सं | भा | वि | त | ए | व | ता | व |
त्क | रे | ण | रु | द्धो | ऽपि | च | के | श | पा | शः |