सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
इतीति॥ अधिश्रीरधिकसंपन्नो भोजकुलप्रदीपः स राजा। इति स्वसुरिन्दुमत्याः पाणिग्रहणं विवाहं संपाद्य कारयित्वा। महीपतीनां राज्ञां पृथगेकैकशोऽर्हणार्थं पूजार्थमधिकृतानधिकारिणः समादि देशाज्ञापयामास ॥
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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इ | ति | स्व | सु | र्भो | ज | कु | ल | प्र | दी | पः |
सं | पा | द्य | पा | णि | ग्र | ह | णं | स | रा | जा |
म | ही | प | ती | नां | पृ | थ | ग | र्ह | णा | र्थं |
स | मा | दि | दे | शा | धि | कृ | ता | न | धि | श्रीः |