पुरोधास्तु पुरोहितः
इत्यमरः (अमरकोशः २.८.५ ) । आज्यादिभिर्द्रव्यैरग्निं हुत्वा तमेव चाग्निं विवाहसाक्ष्य आधाय। साक्षिणं च कृत्वेत्यर्थः। वधूवरौ संगमयांचकार योजयामास ॥
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त | त्रा | र्चि | तो | भो | ज | प | तेः | पु | रो | धा |
हु | त्वा | ग्नि | मा | ज्या | दि | भि | र | ग्नि | क | ल्पः |
त | मे | व | चा | धा | य | वि | वा | ह | सा | क्ष्ये |
व | धू | व | रौ | सं | ग | म | यां | च | का | र |