सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
तत इति॥ ततोऽनन्तरं करेणुकाया हस्तिन्याः सकाशादाशु शीघ्रमवतीर्य। कामरूपेश्वरे दत्तो हस्तो येन सोऽजः। अथो अनन्तरं वैदर्भेण निर्दिष्टं प्रदर्शितमन्तश्चतुष्कं चत्वरम्। नारीणां मनांसीव विवेश ॥
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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त | तो | ऽव | ती | र्या | शु | क | रे | णु | का | याः |
स | का | म | रू | पे | श्व | र | द | त्त | ह | स्तः |
वै | द | र्भ | नि | र्दि | ष्ट | म | थो | वि | वे | श |
ना | री | म | नां | सी | व | च | तु | ष्क | म | न्तः |