सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
असाविति॥ असाववन्तिनाथः महाकालं नाम स्थानविशेषशः, तदेव निकेतनं स्थानं यस्य तस्य चन्द्रमौलेरीश्वरस्याऽदूरे समीपे वसन्। अत एव हेतोस्तमिस्रपक्षे कृष्णपक्षेऽपि प्रियाभिः सह ज्योत्स्नावतः प्रदोषान्रात्रीर्निर्विशत्यनुभवति किल। नित्यज्योत्स्नाविहारत्वमेतस्यैव नान्यस्येति भावः ॥
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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अ | सौ | म | हा | का | ल | नि | के | त | न | स्य |
व | स | न्न | दू | रे | कि | ल | च | न्द्र | मौ | लेः |
त | मि | स्र | प | क्षे | ऽपि | स | ह | प्रि | या | मि |
र्ज्यो | त्स्ना | व | तो | नि | र्वि | श | ति | प्र | दो | षान् |