सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
जगादेति॥ एनामिन्दुमतीं जगाद। किमिति? अयमङ्गनाथोऽङ्गदेशाधीश्वरः सुराङ्गनाभिः प्रार्थिता कामिता यौवनश्रीर्यस्य स तथोक्तः। पुरा किलैनमिन्द्रसाहाय्यार्थमिन्द्रपुरागामिनमकामयन्ताप्सरस इति प्रसिद्धिः। किंच, सूत्रकारैर्गजशास्त्रकृद्भिः पालकाप्यादिभिर्महर्षिभिर्विनीतनागः शिक्षितगजः। किल
इत्यैतिह्ये। अत एव भूमिगतोऽप्यैन्द्रं भुङ्क्ते। भूर्लोक एव स्वर्गसुखमनुभवतीत्यर्थः। गजाप्सरोदेवर्षिसेव्यत्वं ऐन्द्रपद
शब्दार्थः। पुरा किल कुतश्चिच्छापकारणाद्भुवमवतीर्णं दिग्गजवर्गमालोक्य स्वयमशक्तेरिन्द्राभ्यनुज्ञयानीतैर्देवर्षिभिः प्रणीतेन शास्त्रेण गजान्वशीकृते भुवि संप्रदायं प्रावर्तयदिति कथा गीयते ॥
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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ज | गा | द | चै | ना | म | य | म | ङ्ग | ना | थः |
सु | रा | ङ्ग | ना | प्रा | र्थि | त | यौ | व | न | श्रीः |
वि | नी | त | ना | गः | कि | ल | सू | त्र | का | रै |
रै | न्द्रं | प | दं | भू | मि | ग | तो | ऽपि | भु | ङ्क्ते |