सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
प्रवेश्येति॥ एनमजमग्रयीयी। सेवाधर्मेण पुरो गच्छन्नित्यर्थः। नीचैर्नम्रः पुरं प्रवेश्य प्रवेशं कारयित्वा प्रीत्याऽर्पितश्रीस्तथा तेन प्रकारेणोपाचरदुपचरितवान्। यथा येन प्रकारेण तत्र पुरे समेतो मिलितो जनो वैदर्भं भोजमागन्तुं प्राघूर्णिकं मेने। अजं गृहेशं गृहपतिं मेने ॥
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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प्र | वे | श्य | चै | नं | पु | र | म | ग्र | या | यी |
नी | चै | स्त | थो | पा | च | र | द | र्पि | त | श्रीः |
मे | ने | य | था | त | त्र | ज | नः | स | मे | तो |
वै | द | र्भ | मा | ग | न्तु | म | जं | गृ | हे | शम् |