सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
तस्येति॥ तस्यैकनागस्यैकाकिनो गजस्य कपोलभित्त्योर्जलावगाहेन क्षणमात्रं शान्ता निवृत्ता मददुर्दिनश्रीर्मदवर्षलक्ष्मीर्वन्येतरेषां ग्राम्याणामनेकपानां द्विपानां दर्शनेन पुनर्दिदीपे ववृधे ॥
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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त | स्यै | क | ना | ग | स्य | क | पो | ल | भि | त्त्यो |
र्ज | ला | व | गा | ह | क्ष | ण | मा | त्र | शा | न्ता |
व | न्ये | त | रा | ने | क | प | द | र्श | ने | न |
पु | न | र्दि | दी | पे | म | द | दु | र्दि | न | श्रीः |